Editor Posts footer ads

बारहमासा मालिक मुहम्मद जायसी baramsha malik mohamd jaysi antra bhag 2 Hindi class 12 summary


बारहमासा मालिक मुहम्मद जायसी


परिचय 

  • बारहमासा मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य ‘पद्मावत के नागमती वियोग खंड का एक अंश है |
  • इस खंड मे राजा रत्नसेन के वियोग मे रानी नागमती की विरह की व्यथा का वर्णन किया गया है |
  • इस पूरे अंश मे साल के विभिन्न महीनों मे नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है |
  • चार महीनों का वर्णन इस अंश मे किया गया है 


👉अगहन ( साल का 9 वां महीना )

👉पूस (अगहन के बाद का महीना )

👉माघ 

👉फागुन 



(1)

अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुख सो जाइ किमि काढ़ी।। 

अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती ll

 काँपा हिया जनावा सीऊ। तौ पै जाइ होइ संग पीऊ ll

घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रँग लै गा  नाहू ||

पलटि न बहुरा गा जो बिछोई। अबहूँ फिरै फिरै रँग सोई ||

सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा ||

यह दुख दगध न जानै कंतू। जोबन जनम करै भसमन्तू ||

पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग।

 सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।। 


संदर्भ 

       

कवि – मालिक मुहम्मद जायसी 


कविता   - बारहमासा 


प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित कविता बारहमासा से ली गई हैं , यह कविता जायसी जी के महाकाव्य पद्मावत का ही एक अंश है | 

  • इस खंड मे राजा रत्नसेन के वियोग मे रानी नागमती की विरह की व्यथा का वर्णन किया गया है |
  • इस पूरे अंश मे साल के विभिन्न महीनों मे नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है |


व्याख्या

 

  • अगहन महीने के आते ही दिन घट जाते हैं और रातें लम्बी हो जाती हैं और यह बिछड़ने का दुःख और ज्यादा असहनीय हो जाता है।
  • अब पति के वियोग में दिन भी रात की तरह ही कष्टदायी होने लगा है, और जो विरह की अग्नि है वह नागमती को एक दीये की बाती की तरह जला रही है।
  • इस दर्द भरी सर्दी में नागमती का हृदय भी पति के वियोग में कापने लगा है और यह सर्दी उनपर असर नहीं करती जो अपने प्रियतम के साथ है यां जिनके जीवनसाथी उनके साथ हैं।
  • पूरे घर में सर्दी से बचने के लिए कपड़े तैयार किये जा रहे हैं, लेकिन नागमती कहती है की मेरा रूप सौन्दर्य तो मेरे प्रिय अपने साथ ले गए हैं।
  • एक बार जब से वो गए हैं उसके बाद वे पलट कर नहीं आये, अगर मेरी किस्मत अच्छी हुई या सोभाग्य से वे वापस आते हैं तो मेरा रंग रूप मुझे वापस मिल जाएगा 
  • जगह जगह सर्दी से बचने के लिए आग लगे जा रही है लेकिन उसके मन और . उसके तन को तो विरह की अग्नि जला रही है, और यह अग्नि उसके तन मन को राख बना रही है।
  • शायद मेरा यह दुःख मेरा प्रियतम नहीं जनता शायद तभी तो इस अग्नि में मेरा रंग रूप और यौवन सब भस्म हो रहा है।




(2)

पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक दिसि तापा ।।

बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कैंपि कैंपि मरौं लेहि हरि जीऊ ।।

कंत कहाँ हौं लागौं हियरै। पंथ अपार सूझ नहिं नियरें ।।

सौर सुपेती आवै जूड़ी। जानहुँ सेज हिवंचल बूढ़ी ।।

 चकई निसि बिछुरैं दिन मिला। हौं निसि बासर बिरह कोकिला।।

 रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसें जिऔं बिछोही पँखी ।।

 बिरह सचान भँवै तन चाँड़ा। जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा।।

रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।

 धनि सारस होइ ररि मुई, आइ समेटहु पंख।।




संदर्भ 

       

कवि – मालिक मुहम्मद जायसी 


कविता   - बारहमासा 


प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित कविता बारहमासा से ली गई हैं , यह कविता जायसी जी के महाकाव्य पद्मावत का ही एक अंश है | 

  • इस खंड मे राजा रत्नसेन के वियोग मे रानी नागमती की विरह की व्यथा का वर्णन किया गया है |
  • इस पूरे अंश मे साल के विभिन्न महीनों मे नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है |


व्याख्या 


  • पूस के महीने में सर्दी इतनी अधिक बढ़ गयी है की और सूरज के दूर हो जाने से सर्दी और अधिक बढ़ चुकी है
  • और ताप में कमी आ गयी है और ऐसे में शरीर कांप रहा है और ऐसी भयंकर सर्दी नागमती के विरह अग्नि को बढ़ा रही है और इस सर्दी से अब उसे ऐसा लगने लगा है की उसके प्राण ही निकलने वाले हैं ।
  • हे प्रिय तुम कहा हो मुझे आकर एक बार अपने हृदय से लगा लो अर्थात अपने आलिंगन में लेलो ताकि ये सर्दी कम हो जाए आप तक पहुँचने का मार्ग तो बहुत लम्बा में मुझे कुछ  समझ नहीं आ रहा में करू तो क्या करू |
  • जब में लेट कर रजाई ओढती हूँ, तो वह भी बहुत ठंडी लगती है और कष्ट देती है ऐसा लगता है मानो पूरा बिस्तर ही बर्फ में डूबकर हिमालय की तरह ठंडा और बर्फीला हो गया हो। ( इस सर्दी से बचने का एकमात्र उपाय प्रिय से मिलन है )
  • चकवा और चकई तो केवल रात को ही बिछड़ते हैं उनकी स्थिति तो मुझसे बहुत अच्छी है वे कम से कम दिन में तो मिलते हैं।
  • रात होते ही मेरी सखियाँ भी अपने अपने घर को चली जाती है और फिर रानी नागमती अकेली हो जाती है और इस अकेलेपन में इस भयंकर सर्दी के समय इस रात में मेरा हाल ऐसा हो गया है 
  • जैसा एक कबूतरी का अपने प्रिय से अलग होने पर होता है इस अकेलेपन में जीना उसके लिए बहुत 'कठिन होता जा रहा है।
  • ऐसी ऋतु में विरह रुपी बाज मुझ अकेली कबूतरी का शिकार कर रहा है और न मुझे जीने देता है और न ही मरने देता है।
  • इस अग्नि में जलते जलते नागमती का हाल बुरा हो चूका है।
  • इस जुदाई की आग में जलते जलते मेरे शरीर का सारा रक्त आंसू बन कर वह गया है
  • और मांस गल गया है और हहडियों शंख की तरह खोकली हो गयी हैं, मेरा हाल उस मादा सारस की तरह हो गया है जो रो रो कर मर जाती है और केवल पंख ही बच जाते हैं।




(3)

लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़काला।। 

पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै ।।

 आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।।

 एहि मास उपजै रस मूलू। तँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।।

 नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।।

 टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारें झोला ।।

 केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गिय नहिं हार रही होइ डोरा ।।

 तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल। 

तेहि पर बिरह जराइ कै, चहै उड़ावा झोल ।।



संदर्भ 

       

कवि – मालिक मुहम्मद जायसी 


कविता   - बारहमासा 


प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित कविता बारहमासा से ली गई हैं , यह कविता जायसी जी के महाकाव्य पद्मावत का ही एक अंश है | 

 इस खंड मे राजा रत्नसेन के वियोग मे रानी नागमती की विरह की व्यथा का वर्णन किया गया है |

इस पूरे अंश मे साल के विभिन्न महीनों मे नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है |



व्याख्या 


  • माघ महीने के लगते ही पाला पड़ने लगता है और सुबह सुबह ओस पड़ने लगती है एवं ठण्ड और ज्यादा बढ़ जाती है, पति से अलग होने के बाद नागमती को यह कड़ाकेदार सर्दी मौत के सामान लग रही है इस भयंकर सर्दी के कारण नागमती का तन रुई की तरह कांप रहा है और उसका हृदय भी पति से अलग होकर इस ठण्ड में कांप रहा है।
  • इस भयंकर सर्दी से बचने का एकमात्र उपाय मेरे प्रिय से मेरा मिलन है और प्रिय से अगर में मिलती हूँ तो वह इस भयंकर सर्दी में सूरज के ताप के समान होगा |
  • इस माघ के महीने में फूलों में रस आ जाता है और उसी प्रकार मेरा हृदय भी भावनाओं से भर गया है और वह अपने पति को भवर बन कर आने को कहती है और उसका हृदय उसके बाद फूल की तरह खिल जायगा |
  • पति से बिछड़ने के बाद उसकी आँखों से आंसू इस प्रकार बह रहे हैं जैसे बादलों से बरसात होती है और यह आंसू नागमती द्वारा पहने गए वस्त्रों को गीला कर रहे हैं और ये गीले वस्त्र उसे तीर की तरह चुभे रहे हैं।
  • आँखों से गिरने वाली बूंदे ओले की तरह गिर रही हैं, और इस भीषण सर्दी में जो उनकी आँखों से आंसू गिर रहे हैं 
  • उनकी बूंदे वो ओले के सामान लग रही हैं और जब हवा चलती है तो यह विरह की अग्नि और बढ़ जाती है।
  • पति से बिछड़ने के बाद से नागमती न तो श्रृंगार करती है और ना ही किसी प्रकार का आभूषण पहनती है।
  • प्रिय के बिना नागमती का शरीर जुदाई के दुःख से कमजोर और दुर्बल हो गया है और तिनके की तरह हल्का हो गया है इस जुदाई की आग ने उसके शरीर को जला कर राख कर दिया है और अब उसे राख की तरह उड़ाना चाहती है।




(4)

फागुन पवन झंकोरै चौगुन सीउ जाइ किमि सहा ।। 

तन जस पियर पात भा  मोरा। बिरह न रहै पवन होइ झोरा ।।

 तरिवर झरै झरै बन ढाँखा। भइ अनपत्त फूल फर साखा ।।

करिन्ह बनाफति कीन्ह हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू ।।

फाग करहि सब चाँचरि जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी।।

जौं पै पियहि जरत अस भावा। जरत मरत मोहि रोस न आवा।। 

रातिहु देवस इहै मन मोरें। लागौं कंत छार जेऊँ तोरें।।

यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।

 मकु तेहि मारग होइ परौं, कंत धरैं जहँ पाउ।।




संदर्भ 

       

कवि – मालिक मुहम्मद जायसी 


कविता   - बारहमासा 


प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित कविता बारहमासा से ली गई हैं , यह कविता जायसी जी के महाकाव्य पद्मावत का ही एक अंश है | 

  •  इस खंड मे राजा रत्नसेन के वियोग मे रानी नागमती की विरह की व्यथा का वर्णन किया गया है |
  • इस पूरे अंश मे साल के विभिन्न महीनों मे नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है |



व्याख्या 


  • नागमती कहती हैं की फागुन के महीने में जब हवा जब बहुत तेजी से बहने लगती है, तो हवा के झोकों से ठण्ड से होने वाला कष्ट और भी बढ़ जाता है और यह ठण्ड असहनीय है।
  • नागमती कहती है की उसका शरीर विरह वेदना के कारण पीले पत्ते की तरह पीला पड़ गया है, जिस तरह तेज हवाओं के कारण पेड़ों के पीले पत्ते हिलते रहते हैं वैसी ही उसी प्रकार उसका शरीर विरह के कारण कॉप रहा है।
  • नागमती कहती है की पतझड़ के बाद पेड़ों में नई नई कोपलें आती हैं और नए नए पते और फल आते हैं और सभी पेड़ आनंद में झूमते दिखाई पड़ते है लेकिन उसके मन को यह सब पसंद नहीं आता और यह सब उसके दुःख और उदासी को दुगना कर देता है |
  • गाँव में सभी स्त्रियाँ मिल जुलकर नाचती गाती हैं एवं होली का उत्सव मानती हैं, और नागमती को ऐसा लगता है की यह होली की आग उसके हृदय में जल रही है जो उसके तन मन को भी जला रही है।
  • अभी भी इस अंतिम समय में मेरे प्रिय वापस आ जायें और इस समय मै मरनासन अवस्था में हूँ परन्तु इस समय भी मुझे इस विरह अग्नि में इस वेदना से जलने में कोई कलेश नहीं होगा क्योकि उनके दर्शन से में धन्य हो जाउंगी |
  • रात दिन में अपने मन में यहीं सोचती हूँ की मेरा यह शरीर किसी भी प्रकार मेरे प्रिय के काम आ जाये |
  • नागमती पवन से अनुरोध कर रही है की मेरे शरीर की इस राख को उड़ाकर मेरे प्रिय के मार्ग में बिछा देना ताकि राख पर चलने से मुझे उनके चरणों का स्पर्श अनुभव हो


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!